लैटरल एंट्री क्या है?
लैटरल एंट्री एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें सरकार सीधे प्राइवेट सेक्टर, पब्लिक सेक्टर (PSUs), अकादमिक संस्थानों और अन्य क्षेत्रों से अनुभवी विशेषज्ञों को चुने हुए प्रशासनिक पदों पर नियुक्त करती है। इस रास्ते में पारंपरिक लिखित प्रतियोगिता (जैसे UPSC का फॉर्मेट) के बजाय उम्मीदवार के पेशेवर अनुभव और डोमेन नॉलेज को तरजीह दी जाती है।
लैटरल एंट्री का मक़सद यह है कि सरकार के अंदर नई सोच, विशेषज्ञता और व्यवहारिक अनुभव लाया जाए ताकि नीतियाँ और प्रोजेक्ट्स ज़मीन पर बेहतर ढंग से लागू हो सकें। सीधे शब्दों में, लैटरल एंट्री प्रशासन में बहार के माहिरों को अंदर लाने की कोशिश है।
लैटरल एंट्री का इतिहास और विकास
लैटरल एंट्री का विचार 2005 की दूसरी प्रशासनिक सुधार समिति (Second ARC) तक जाता है, जब यह सुझाव आया कि प्रशासन में विशेषज्ञता की कमी को पूरा करने के लिए बाहरी प्रोफेशनल्स को समय-समय पर शामिल किया जाना चाहिए। व्यवहारिक रूप से यह प्रक्रिया 2018 में लागू हुई, जब केंद्र सरकार ने पहली बार जॉइंट सेक्रेटरी स्तर के कुछ पदों के लिए विज्ञापन निकाला। तब से अलग-अलग चरणों में नियुक्तियाँ की गईं और लैटरल एंट्री धीरे-धीरे चर्चित नीति बनी।
अब तक कितनी नियुक्तियाँ हुईं?
सरकारी बयानों के अनुसार 2018 से अब तक कुल 63 नियुक्तियाँ लैटरल एंट्री के माध्यम से की जा चुकी हैं। ये नियुक्तियाँ 2018, 2021 और 2023 के तीन चरणों में हुईं, और इनमें से कई अधिकारी अब भी केंद्रीय मंत्रालयों में महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभा रहे हैं।
वर्ष (चरण) | नियुक्तियों की अनुमानित संख्या | प्रमुख पदों के उदाहरण |
---|---|---|
2018 | प्रारम्भिक नियुक्तियाँ | Joint Secretary, Director |
2021 | मध्य चरण | Deputy Secretary, Director |
2023 | हालिया चरण | Joint Secretary व अन्य वरिष्ठ पद |
यह तालिका संक्षेप में स्थिति बताती है — हर चरण में अलग मंत्रालयों और ज़रूरत के हिसाब से चयन हुआ।
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लैटरल एंट्री में चयन प्रक्रिया कैसी होती है?
लैटरल एंट्री के लिए सामान्यतः UPSC (संघ लोक सेवा आयोग) विज्ञापन जारी करता है और आवेदन ऑनलाइन आमंत्रित किए जाते हैं। चयन का बेसिक क्रम इस तरह होता है:
- ऑनलाइन आवेदन और दिये गए मापदंडों के अनुसार स्क्री닝।
- शॉर्टलिस्टेड उम्मीदवारों का इंटरव्यू और अनुभव की जांच।
- चयनित उम्मीदवारों को आमतौर पर 3 साल के अनुबंध पर नियुक्त किया जाता है, जिसे प्रदर्शन के आधार पर 5 साल तक बढ़ाया जा सकता है।
पदों के मुताबिक अनुभव और उम्र सीमा भी तय रहती है—जैसे जॉइंट सेक्रेटरी के लिए लंबा अनुभव, डायरेक्टर व डिप्टी सेक्रेटरी के लिए कम पर अपेक्षित अनुभव।
चयन मानदंड (संक्षेप)
- Joint Secretary: लगभग 15 साल का पेशेवर अनुभव, उम्र सीमा सामान्यतः 40–55 साल।
- Director: लगभग 35–40 वर्ष आयु के अस्थायी मानक।
- Deputy Secretary: लगभग 32–40 वर्ष आयु।
मुख्य बात यह है कि लैटरल एंट्री में डोमेन-विशेषज्ञता (domain expertise) और प्रत्यक्ष काम का अनुभव सबसे अहम माना जाता है।
आरक्षण का बड़ा प्रश्न — क्या मिलता है आरक्षण?
लैटरल एंट्री पर सबसे अधिक विवाद आरक्षण को लेकर होता है। सरकार के अनुसार ऐसी नियुक्तियाँ अक्सर “सिंगल पोस्ट कैडर” के अंतर्गत आती हैं और सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों के सन्दर्भ में इस तरह की भर्तियों पर पारंपरिक आरक्षण लागू नहीं होता। इसलिए SC/ST/OBC जैसी कैटेगरी के लिए आरक्षण नहीं माना जाता। इसी कारण कई बार राजनीतिक व सामाजिक बहसें होती रही हैं और कुछ विज्ञापन विवाद के चलते रद्द भी हुए हैं।
हालिया घटनाएँ और विवाद
अगस्त 2023 में UPSC द्वारा जारी किए गए एक बड़े लैटरल एंट्री विज्ञापन को आरक्षण को लेकर उठे विवाद के बाद रद्द करना पड़ा था। आलोचनाओं का केंद्र यही था कि बिना आरक्षण के नियुक्तियाँ व्यापक सामाजिक समावेशन के सिद्धांतों से टकराती हैं। सरकार ने संकेत दिया कि नीति में सुधार व पारदर्शिता बढ़ाने पर विचार हो रहा है और सामाजिक न्याय प्राथमिकता बनी रहेगी।
लैटरल एंट्री के फ़ायदे और चुनौतियाँ
लैटरल एंट्री के स्पष्ट लाभ और कुछ संगीन चुनौतियाँ दोनों हैं। नीचे सारणी में दोनों पक्ष साफ़ दिखाए गए हैं:
फायदे (Advantages) | चुनौतियाँ (Challenges) |
---|---|
अनुभवी पेशेवर प्रशासन में आते हैं; प्रोजेक्ट्स में प्रभावशीलता बढ़ती है | आरक्षण का अभाव; सामाजिक समावेशन पर सवाल |
नीतियों में डोमेन-नॉलेज का फायदा; त्वरित निर्णय संभव | UPSC/पारंपरिक उम्मीदवारों में असंतोष |
व्यवहारिक एक्सपीरियंस से प्रेक्टिकल समाधान मिलते हैं | चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता की माँग रहती है |
इन फ़ायदों और कमियों को देखकर कहा जा सकता है कि लैटरल एंट्री नीति में सुधार और स्पष्ट नियम जरूरी हैं ताकि लाभ अधिकतम हो और समस्याएँ कम हों।
क्या यह नौजवान उम्मीदवारों के लिए जोखिम है?
कई युवा UPSC जैसी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं और उनका सवाल स्वाभाविक है: क्या लैटरल एंट्री से उनकी मेहनत का नुकसान होगा? मेरा नजरिया यह है कि अगर लैटरल एंट्री पारदर्शी तरीके से और सीमित, विशिष्ट जरूरतों के लिए प्रयोग की जाए तो यह दोनों को साथ लेकर चल सकती है—यानी सिस्टम में अनुभव और मेहनत दोनों का सम्मान रहेगा। असल में प्रशासन को विविध प्रकार के कौशल की ज़रूरत होती है: वह लोग जो सिस्टम समझते हैं और जो सिस्टम को बेहतर बना सकते हैं।
सरकार की भूमिका और आगे की दिशा
सरकार ने कहा है कि वह सामाजिक न्याय और पारदर्शिता के सिद्धांतों का पालन करना चाहती है। इसलिए लैटरल एंट्री नीति में सुधार और स्पष्ट दिशा-निर्देशों पर काम होना चाहिए—जैसे पदों का स्पष्ट वर्गीकरण, आरक्षण सम्बन्धी वैधानिक सीमाएँ और चयन मानदंडों की अधिक खुली व्याख्या। इससे न केवल विवाद कम होंगे बल्कि समावेशन भी बढ़ेगा।
निष्कर्ष
लैटरल एंट्री एक अहम नीति प्रयोग है जो प्रशासन में विशेषज्ञता और व्यवहारिक अनुभव ला सकता है। साथ ही आरक्षण और पारदर्शिता से जुड़ी चुनौतियाँ इसे संवेदनशील बनाती हैं। मेरा मानना है कि सही सुधारों और स्पष्ट नियमों के साथ लैटरल एंट्री प्रशासन के लिए एक सकारात्मक जोड़ साबित हो सकती है।